पिछले दो हफ्तों के भीतर राजेंद्र यादव, के.पी. सक्सेना, परमानंद श्रीवास्तव और अब बिज्जी का जाना. यूं तो उम्र के गणित और कुदरत के नियम के हिसाब से यह एक प्रक्रिया का हिस्सा भर है; लेकिन अगर इसे हिंदी भाषा और साहित्य की नजर से देखें तो दो हफ्तों के भीतर टूटी चार-चार बडी विपदाएं हैं. विजयदान देथा का 10 नवंबर को दिल का दौरा पडने से उनके पैतृक गांव बोरूंदा में निधन हो गया. जिस तरह बिज्जी ने कभी हिंदी में लिखने का मोह नहीं पाला, उसी तरह उन्होंने कभी अपने गांव को छोडकर जयपुर या जोधपुर जैसे शहरों में बसने का भी मोह नहीं पाला यह बिज्जी की अपनी ताकत ही थी कि उन्हें हिंदी की अनमोल धरोहर समझा जाएगा राजस्थान की लोक कथाओं को नई पहचान दिलाने वाले देथा को 800 से अधिक लघुकथाएं लिखने का श्रेय प्राप्त है......