हबीब तनवीर ने उनकी इस कहानी पर 20,000 से ज्यादा बार थिएटर किया. 2 सितंबर 1926 को पैदा हुए बिज्जी शुरू में कवि थे और एक तरह से अपनी विरासत को आगे बढा रहे थे. दरअसल बिज्जी राजस्थान की चारण जाति से ताल्लुक रखते थे, जो कभी राजा रजवाडों के जमाने में राज दरबारों में कविताएं किया करते थे. बिज्जी के पिता और उनके दादा अच्छे कवि थे और यही संस्कार व गुण बिज्जी में भी थे. लेकिन ये गुण उनमें अपने पिता या परिवार के दूसरे लोगों की बदौलत नहीं आए बल्कि उन्होंने खुद विकसित किया था. क्योंकि जब वह महज 4 साल के ही थे एक पारिवारिक कलह में उनके पिता और उनके दो बडे. भाइयों की हत्या कर दी गई थी. संभवत: इसी वजह से उनके जीवन में करुणा की जबर्दस्त जगह थी. बिज्जी अगर लोक कथाकार नहीं होते तो संभवत: वह बडे. मार्क्सवादी चिंतक होते. उनमें गजब का अनुशासन था और उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता हमेशा समाजवाद के साथ रही. वह स्त्रियों की आजादी के भी जबर्दस्त सर्मथक थे. लेकिन उनमें यह सब पश्चिमी गुणों की तरह नहीं था बल्कि खांटी हिंदुस्तानी परंपरा के रूप में था.........