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Old 21-01-2011, 11:44 AM   #21
Kumar Anil
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Default Re: चर्चा पर खर्चा।

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Originally Posted by amit_tiwari View Post
कदाचित मैं स्वयं को स्पष्ट नहीं कर पाया |
मैंने दोषी को कठोर दंड दिए जाने का विरोध नहीं किया, मेरा विरोध मात्र जन सामान्य को हत्यारा बनाने पर है |
मेरे विचार से ज्यादा उचित है की हम कितनी जल्दी निर्णय लेते हैं, ना की कितना बर्बर निर्णय लेते हैं | यदि इसी कसाब को घटना के मात्र एक सप्ताह के अन्दर ही क़ानूनी प्रक्रिया से दोषी ठहरा कर तोप से उड़ा देते तो वह हमारी दृढ़ता को दर्शाता | डेढ़ साल तक बिरयानी खिलाके, उसे उर्दू का ट्रांसलेटर दिला के ऐसे भी तथाकथित नेतृत्व ने पिलपिले होने का प्रमाण दे ही दिया है |

अनिल भाई आपकी नेतृत्व की निकम्मेपन वाली बात से सहमत होना लाजिमी है | श्रीमती इंदिरा गाँधी और बेअंत सिंह की हत्या के बाद राजनीतिक इच्छाशक्ति राजनीतिक पटल से गायब हो चुकी है | अब राजनीति एक कैरियर है जिसे नेता और जनता दोनों ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते हैं |
और खरी खरी कही जाये तो अभी भारतीय जनसामान्य उतना परिपक्व है भी नहीं कि उचित अनुचित को परख सके | शायद इसीलिए ये टुच्चे अनपढ़ नेता बने बैठे हैं | अन्यथा जब ४ साल पहले iit कानपुर के छात्रों ने मात्र प्रोफेशनल लोगों को मिला कर एक पार्टी बनायीं तो उन्हें लोकसभा, विधानसभा यहाँ तक कि पार्षद के चुनाव में भी विजय क्यूँ नहीं मिली ??? कोई एक कारण? कारण है कि उन्होंने नाला खुदवाने, हैंडपंप लगवाने और जाती बिरादरी की बातें नहीं की |

यदि मैं विषय से दूर जा रहा हूँ तो क्षमा चाहूँगा किन्तु आगे की पंक्तियाँ समस्या के दुसरे पहलु को उजागर करती हुई हैं |
हम अपनी औपनिवेशिक सोच से आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं हैं | कोई स्वीकारे या ना स्वीकारे किन्तु आज भी आरक्षण का वादा करने वाला संसद विधायक चुनाव जीत जाता है और कोई माई का लाल प्रधानमंत्री आरक्षण हटाने का बूता नहीं रख पाया | कारण सीधा है कि लोग समझते हैं आरक्षण से बड़ा भला होने जा रहा है, क्या सच में ? जरा सोचिये अभी भी भारत में असंगठित क्षेत्र से ८० प्रतिशत रोजगार आता है और असंगठित क्षेत्र में सरकारी आरक्षण लागू हो नहीं सकती, बचे बीस प्रतिशत में भी सरकारी हिस्सा ४०% का ही है मतलब ९२% रोजगार के अवसरों में सरकारी आरक्षण का कोई दखल ही नहीं है, अब खुद सोचिये कि मात्र ८% के रोजगार में आधे का लालच दिखा कर यदि कोई दल, व्यक्ति सत्ता पर कब्ज़ा करता है तो वो धूर्त है या उस पर विश्वास करने वाला मतदाता | क्यों सरकारी नौकरी का इतना क्रेज़ है ? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि बस एक बार जैसे तैसे करके घुस गए फिर तो जिंदगी भर खाते रहना है |
जब तक सुरक्षात्मक होना हमारे dna में है तब तक लूटने वाले लुटते रहेंगे, मारने वाले मारते रहेंगे |

दीर्घकालिक उपाय लोगों को लोगो को कुछ करने के लिए सिखाना नहीं उन्हें शिक्षित करना होगा कि उन्हें कैसे सही निर्णय लेना है | और वास्तविकता यह है कि अब वैश्विक चुनौती इतनी कठिन और दुरूह है कि जल्दी सीखते नहीं तो पिछड़ते ही चले जायेंगे |
मानसिक खुराक पूरी करने के लिये मित्र शुक्रगुजार हूँ । शीघ्र ही विश्लेषण का हिस्सा बनना चाहूँगा ।
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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