Re: चर्चा पर खर्चा।
@amit
और खरी खरी कही जाये तो अभी भारतीय जनसामान्य उतना परिपक्व है भी नहीं कि उचित अनुचित को परख सके |........
आपकी बात सोलह आने सही है । अन्यथा किसी पार्टी की औकात नहीँ थी कि वह फूलन देवी जैसी डकैत को माननीय साँसद बनवा देती । जनसामान्य परिपक्व नहीँ है और जो बचे खुचे परिपक्व हैँ विवेकशील हैँ वो अपने सोये हुये जमीर के साथ अपने ड्राइंगरूम मेँ मात्र और मात्र गुफ्तगू कर कर्तव्योँ की इतिश्री समझ ले रहे हैँ । अन्यथा बाला साहब ठाकरे का परचम न लहरा रहा होता ।
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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