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Originally Posted by kalyan
अनिल जी, आपके सूत्र के शीर्षक बहुत प्यारा है !! विषयवस्तु भी अत्यंत वेदनादायी है !!
ऐसी सूत्र के रचनाकार से विस्तार पूर्वक अवदान के उम्मीद है !!
जल्दी इस सूत्र में अपना भी एक छोटा सा योगदान करेंगे !!
धन्यवाद !!
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मित्र ये मेरा नहीँ अपितु हम सबका सूत्र है । हम अपने विचारोँ को साझा कर यंत्रवत हो चुके इस जीवन की संवेदनाओँ को खँगालेँगे । सिकुड़े सिमटे कराहते रिश्तोँ की मीमांसा कर उसे उपचारित करने का भी प्रयास करेँगे । भौतिकता रूपी दीमक द्वारा खोखली कर दी गयी नीँव को पुनः ठोस करने के उपाय सोचेँगे । अन्त मेँ मैँ आप सबका आभारी हूँ कि आप सब एक एक कर श्रृँखलाबद्ध हो गये और मेरे विचार को अपने शब्द देने के लिये आतुरता प्रकट कर रहे हैँ ।