Re: बढ़ती दुनिया सिकुड़ते रिश्ते
विश्व बन्धुत्व , वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओतप्रोत प्रेम के पुजारी इस देश ने न जाने क्यूँ समष्टिवाद से व्यष्टिवाद की ओर चलने की ठान ली और नतीजतन मूल्योँ का क्षरण आरम्भ हो गया । समाज की मूलभूत इकाई व्यक्ति मशीन बनकर रह गया । व्यक्ति के इस रूपान्तरण ने प्रेम की बलि देकर संवेदनाओँ को संज्ञाशून्य कर दिया । मोहल्लोँ के चाचा , चाची , मामा , मौसी न जाने कहाँ और कब काल कवलित हो गये और मीठे मुँहबोले रिश्तोँ के कब्रिस्तान पर न जाने कब उग आयीँ कुकुरमुत्ती कालोनियोँ का कैक्टस सामाजिक ढाँचे को क्षत विक्षत कर हमारा उपहास करने लगा ।
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