Re: मुहावरों की कहानी
जैसे को तैसा (दो)
एक लघु कथा : जैसे को तैसा
एक गड़रिया एक बनिए को मक्खन बेचता था। एक दिन बनिए को शक हुआ कि गड़रिया ठीक मात्रा में मक्खन नहीं दे रहा है। उसने अपने तराजू में तोलकर देखा तो मक्खन का वजन कम निकला। वह आग बबूला हुआ, राजा के पास गया। राजा ने गड़रिए को बुलवाकर उससे पूछा, क्यों, तुम मक्खन कम तोलते हो?
हाथ जोड़कर गड़रिए ने नम्रतापूर्वक कहा, हुजूर, मैं रोज एक किलो मक्खन ही बनिए को दे जाता हूं।
नहीं हुजूर, मैंने तोलकर देखा है, पूरे दो सौ ग्राम कम निकले, बनिए ने कहा।
राजा ने गड़रिए से पूछा, तुम्हें क्या कहना है?
गड़रिया बोला, हुजूर, मैं ठहरा अनपढ़ गवार, तौलना-वोलना मुझे कहां आता है, मेरे पास एक पुराना तराजू है, पर उसके बाट कहीं खो गए हैं। मैं इसी बनिए से रोज एक किलो चावल ले जाता हूं। उसी को बाट के रूप में इस्तेमाल करके मक्खन तोलता हूं।
बनिए को मुंह छिपाने की जगह नहीं मिल रही थी।
(साभार: बालसुब्रमण्यम)
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