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Originally Posted by Bond007
मेरे वरिष्ठजन काफी कुछ कह चुके हैं|
मैं बस इतना कहना चाहूँगा कि काम वो करो जो दिल को सुकून दे| एकदम नहीं तो धीरे-धीरे ही सही; साथ देने वाले और होंसला बढाने वाले राह में मिल ही जाते हैं|
बात सिर्फ महंगाई या घर के खर्चों की नहीं है| अब शादी के बाद लड़की सिर्फ शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति और बच्चे पैदा करने का साधन मात्र नहीं रह गई है|
अब वो कोई सिर्फ झाडू-पूंछा, बर्तन-सरतन और बच्चो कि साफ़-सफाई तक सीमित बाई नहीं है|
मौका मिलने पर वो पति, बच्चो समेत पूरे परिवार को संभालती है|
उसे किसी कार्य के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता| थोड़ी बहुत परेशानी परिवार कि तरफ से आती ही हैं;
लेकिन उनके साथ मित्रवत व्यवहार करके, उन्हें समझाकर, फायदे-नुक्सान बताकर सब कुछ सामान्य किया जा सकता है|
ये न भूलो कि वे मानसिक रूप से हम से ज्यादा ताकतवर होती हैं. नारी ही है जो मुसीबत में परिवार कि नैय्या पार लगा देती है|
उनसे ज्यादा हमें उनकी जरूरत होती है. तो उनपर किसीभी बात के लिए पाबन्दी क्यों|
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Originally Posted by Bond007
पति-पत्नि का रिश्ता विश्वास का रिश्ता होता है|
जब एक दुसरे पर विश्वास ही नहीं है तो क्या फायदा होगा दूसरे मर्दों से मिलने पर रोक लगाने का?
हम आदमी कितने भी अफेयर करले...कुछ नहीं......., कितनी भी गर्लफ्रेंड बना लें कुछ नहीं; उन्हें ही क्यों बांध कर रहना पड़े?
बात रही कमाई के इगो कि तो वो पुरुषों कि ही छुद्र सोच के कारण पैदा होता है| सबसे पहले हमारी ही नजर में उनकी कमाई खटकती है|
आपसी सामंजस्य नहीं होगा तो ही ये बातें होंगी कि मैं भी कमाती हूँ.......................
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मैं आपसे सहमत हूँ Bond जी!
चलो कहीं तो पुरुषों की नज़र भी धीरे-धीरे हमारे प्रति सकारात्मक हो रही है. मुझे उम्मीद है फोरम का ये सूत्र इस मामले में जागरूकता फैलाने के लिए छोटा ही सही मगर कुछ तो योगदान देगा.
देखकर अच्छा लगा की दुनिया में सभी पुरुष संकीर्ण एवं पुरुषवादी सोच के नहीं हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो सच्चाई के पक्षधर हैं.