28-12-2013, 09:03 PM
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
लौह-ओ-कलम
फैज़ अहमद 'फैज़'
हम परवरिश-ऐ-लोह-ओ-कलम करते रहेंगे,
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे।
असबाब-ऐ-ग़म -ऐ-अश्क़ बहम करते रहेंगे,
वीरानी-ऐ-दौराँ पे करम करते रहेंगे।
हाँ! तल्खी-ऐ अय्याम अभी और बढेगी,
हाँ! अहल-ऐ-सितम मश्क-ऐ-सितम करते रहेंगे।
मन्ज़ूर ये तल्खी, ये सितम हमको गवारा,
दम है तो मदावा-ए-अलम करते रहेंगे।
मैखाना सलामत है तो हम सुर्खी-ऐ-मय से,
तज़इन दर-ओ-बाम-ऐ-हरम करते रहेंगे।
बाक़ी है लहू दिल में तो हर अश्क़ से पैदा,
रंग-ऐ-लब-ओ-रुख़सार-ऐ-सनम करते रहेंगे।
इक तर्ज़-ऐ-तगाफ़ुल है सो वो उनको मुबारक,
इक अर्ज़-ऐ-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे।
मेरा फ़ोरम के सभी मित्रों से निवेदन है कि वे फैज़ साहब के कलाम को निम्नलिखित सूत्र पर और विस्तारपूर्वक पढ़ सकते हैं और उसका आनन्द ले सकते हैं:
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=5187
Last edited by rajnish manga; 30-12-2013 at 09:20 PM.
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