Re: पौराणिक कथायें एवम् मिथक
यक्ष-युधिष्ठिर संवाद (2)
.... जब भीम भी लौट कर नहीं आया तो युधिष्ठिर अत्यंत व्याकुल हो उठे. वे स्वयं अपने भाइयों की खोज में निकले/ चलते चलते वे उसी जलाशय पर पहुंचे और वहां अपने चरों भाइयों को मृत पड़ा देखा तो उनका हृदय विदीर्ण हो गया.
युधिष्ठिर बड़े कातर स्वर में विलाप करने लगे. उन्हें आकाशवाणी सुनाई दी, “हे युधिष्ठिर! तुम्हारे भाइयों को बारी बारी से मैंने कहा था कि मेरे प्रश्नों का उत्तर दो और तब पानी पीओ, नहीं तो तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी. लेकिन तुम्हारे भाइयों ने मेरे वचनों की अवज्ञा की. इसलिए मेरे शाप से उनकी मृत्यु हुई है. अब मैं तुम्हें भी यही कहता हूँ कि यदि तुम पानी पीना चाहते हो पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, नहीं तो तुम्हारी भी वही गति होने वाली है, जो तुम अपने भाइयों की देख रहे हो.”
इस पर युधिष्ठिर ने कहा, “पहले मैं प्रश्नकर्ता को देखना चाहता हूँ, उसके बाद मैं प्रश्नों का यथामति उत्तर दूंगा.”
स्वयं धर्मराज, जो युधिष्ठिर के बल, बुद्धि और धर्म-भावना की थाह लेने के लिये पहले मृग बने थे, अब विशालकाय यक्ष के रूप में प्रगट हुये.
नमस्कार के बाद युधिष्ठिर ने उनसे कहा, “अब आप अपने प्रश्न पूछें.”
यक्ष ने कई प्रश्न पूछे और युधिष्ठिर ने सब का यथोचित उत्तर दिया. उसी प्रश्नोत्तरी में से कुछ अंश नीचे दिया जाता है:
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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