Re: जब आशाएं दम तोड़ती हैं....
यूँ रस्ते में रुक कर हम हार स्वीकारने के साथ-साथ उस इश्वर का भी अपमान कर देते हैं, जिसने हमें "आशाओं" का अनमोल तोहफा भेंट किया. और उस क्षण के बाद हमारा जीवन और भी कठिनाइयों भरा और अर्थ-रहित हो जाता है.
ये आशाएं इश्वर की देन है, हम इस के सही हकदार तब ही कहला सकते हैं जब हम इनकी सुरक्षा करना के काबिल हों, ये हमारी आत्मा से जुदा हुआ ईश्वरीय एहसास है, इनको अपने दिलों में सहेज के रखना हमारी ज़िम्मेदारी है और हमें हमारी जिम्मेदारियों से मुह नहीं फेरना चाहिए, बल्कि निडर हो कर जीवन के सत्यों का सामना करते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ना चाहिए.
अगर हम इस नायब तोहफे को,अपने दिलों में संजो के, हिम्मत न हारते हुए आगे बढ़ेंगे तो, मंजिलें ज़रूर मिलेंगी और, ख्वाहिशें ज़रूर खिलेंगी. ज़िन्दगी के इस लम्बे सफ़र पर चलते समय हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि, आशाओं का काम है हमारे सपनो को पंख देना और हमें चुनौतियों से लड़ने का जज्बा देना, और हमारा कर्त्तव्य है, इन आशाओं को अपने दिल में संजो के रखना, और किसी भी मुश्किल मोस पर इन्हें टूटने ना देना.
क्योंकि जब इंसानों कि "जब आशाएं दम तोड़ती हैं", तो ईश्वर को ठेस पहुंचती है.
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