01-02-2014, 09:42 PM
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#27
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल
कलाम: जां निसार अख्तर
हम आप क़यामत से गुजर क्यूँ नहीं जाते |
जीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते |
कतराते है बलखाते है,घबराते है क्यूँ लोग,
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते |
आँखों में चमक है तो नजर क्यूँ नहीं आता ,
पलको पे गुहर हैतो बिखर क्यूँ नहीं जाते
अखबार में रोजाना वाही शोर है,यानी ...
अपने से ये हालात संवर क्यूँ नहीं जाते |
यह बात अभी मुझको भी मालुम नहीं है,
पत्थर इधर आते है,उधर क्यूँ नहीं जाते |
(गुहर - मोती )
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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