Re: लोककथा संसार
ब्राह्मण ने कहा, “क्या बताऊं ! एक बड़ी ही कठिन समस्या मेरे सामने आ खड़ी हुई है। राजा के महल का जो आंगन है, वहां रोज रात को एक पक्षी आता है और चारों पहरों मे नित्य नियम से चार आलग-अलग बातें कहता है। राजा पक्षी की उन बातों का मतलब नहीं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर पक्षी की पहेलियां मेरी समझ में भी नहीं आतीं। राजा को जाकर क्या जवाब दूं, बस इसी उधेड़-बुन में हूं।”
ब्राह्राणी बोली, “पक्षी कहता क्या है? जरा मुझे भी सुनाओ।”
ब्राह्राणी ने चारों पहरों की चारों बातें कह सुनायीं। सुनकर ब्राह्राणी बोली। “वाह, यह कौन कठिन बात है! इसका उत्तर तो मैं दे सकती हूं। चिंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो कि पक्षी की बातों का मतलब मैं बताऊंगी।”
ब्राह्राण राजा के महल में गया और बोला, “महाराज, आप जो पक्षी के प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं, उनको मेरी स्त्री बता सकती है।”
पुरोहित की बात सुनकर राजा ने उसकी स्त्री को बुलाने के लिए पालकी भेजी। ब्राह्राणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बिठाया। रात हुई तो पहले पहर पक्षी बोला:
“किस मुख दूध पिलाऊं,
किस मुख दूध पिलाऊं ?”
राजा ने कहा, “पंडितानी, सुन रही हो, पक्षी क्या बोलता है?”
वह बोली, “हां, महाराज ! सुन रहीं हूं। वह अधकट बात कहता है।”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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