Re: फेसबुक समाचार
एक दिन एक साधू घूमता हुआ एक गाँव में पहुँचा तो वहाँ कि स्थिति देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ | लोग दयनीय अवस्था में पड़े हुए हैं लेकिन सभी ऊँच नीच के भेदभाव में इस कदर जकड़े हुए थे कि कोई किसी की मदद करने को तैयार नहीं था |
लोगों ने साधू की खूब आव भगत की और अपनी दरिद्रता से मुक्ति का मार्ग पूछा | महाराज ने कुछ सोचा और बोला कि कल शाम को बताऊंगा | सभी साधू को आराम करने के लिए छोड़ कर चले गए |
सुबह जब गाँव वाले उठे तो देखा कि साधू गायब हो गया | सभी जगह साधू को खोजा नहीं मिला साधू | लोगों ने दुनिया भर की बातें करनी शुरू कर दी और इसी प्रकार बातें करते और साथ ही साथ कुछ लोग साधू को खोजते जंगल की तरफ निकल गए | अभी गाँव से थोड़ी ही दूर गए थे कि देखा साधू एक पेड़ के नीचे खुदाई कर रहा है |
लोग भाग कर उसके पास पहुँचे और पूछा कि क्या कर रहे हो ? साधू चुपचाप खोदता रहा | थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति आगे बढ़ा और बोला बाबा मुझे दे दो कुदाल, आप थोड़ा आराम कर लो |
साधू ने मना कर दिया | अब लोगों की बैचेनी और बढ़ गई थी | थोड़ी देर में ही आसपास के और गाँव के लोग भी इकठ्ठा हो गये और जानना चाहा कि बाबाजी गड्ढा क्यों खोद रहें है | सभी लोग अपनी अपनी सलाह भी दे रहे थे | एक ने बताया कि कुदाल चलाते समय कौन सा पैर आगे रखना है और कौन सा पीछे | एक ने कहा कि कुदाल चलाने से पहले एक गिलास गाय का दूध पीना जरुरी है | एक ने कहा कि पहले कुदाल की आरती उतारनी चाहिए थी | एक ने कहा कि कुदाल पूरब की दिशा में मुँह करके चलानी चाहिए....
साधू चुपचाप सब कुछ सुनता रहा और कुदाल चलाता रहा | आखिर लोगों की बैचैनी और बढ़ गई लेकिन साधू कुछ बोलने को तैयार नहीं था | अब गाँव वाले भी परेशान कि बिना जाने जाएँ तो जाएँ कैसे ? कोई भी हिलने को तैयार नहीं था |
देखते देखते दोपहर होने को आयी तो साधू ने कहा कि आप लोग जाइए यहाँ आप लोग अपना समय मत बर्बाद कीजिए | खाने का समय हो गया है और आप लोगों और भी काम होंगे उन्हें निबटाइए | लेकिन लोगों के तो पेट में दर्द हो गया था कि राज क्या है और बाबा किसी को बता क्यों नहीं रहे ? लोगों जाने से साफ़ इनकार कर दिया और वहीँ खाने पीने की व्यवस्था भी सभी लोगों ने मिलकर कर दी | सभी गाँव के लोगों ने वहीँ खाना बनाया और साथ साथ सभी खाए |
खाने के बाद गाँव वालों ने फिर पूछा कि क्यों खोद रहें हैं ? साधू बोला कि यदि बता दूँगा तो बहुत मुश्किल हो जायेगी | आप सभी इतने सारे लोग हैं और हिस्सा मांगेंगे तो पता नहीं कितना निकले और सभी को मिल भी पायेगा या नहीं....
इतना सुनना था कि लोगों में होड़ लग गई खुदाई करने की | कुछ अपने घर भागे और कुदाल फावड़ा जो मिला उठा लाये | साधू बहुत चिल्लाया अरे मेरी बात तो सुन लो... लेकिन गाँव वाले मुर्ख थोड़े ही थे जो इतना भी नहीं समझते कि साधू बिना किसी को बताये पेड़ के नीचे क्यों खुदाई कर रहा था | सो उन्होंने साधू महाराज के लिए चारपाई की व्यवस्था कर दी और वहीँ आराम करने को कह कर खुदाई में लग गए | इस तरह हफ्ते भर खुदाई होती रही | वहीँ खाना वहीँ सोना वहीँ प्रवचन.... क्योंकि कोई भी नहीं चाहता था कि उसके जाने के बाद कुछ निकले और वह जब तक लौटे तो सब बंट चुका हो |
इस एक हफ्ते में सभी गाँव वाले आपस में इतने घुल मिल गए कि यही नहीं पता चलता था कि दो तीन गाँव के लोग यहाँ इकट्ठे हैं | गाँव वालों ने पूछा कि बाबा अब तो पानी भी निकल आया लेकिन खजाना तो निकला ही नहीं |
बाबा बोले मैंने कब कहा था कि नीचे खजाना है ? तुम लोग तो सुनने को ही तैयार नहीं थे और खजाना नीचे नहीं ऊपर है | लोगों ने ऊपर पेड़ पर नजर दौड़ाई | वहाँ नहीं अपने आसपास नजर दौडाओ | तुम सब की एकता ही वह खजाना है | अब देखो तुम सब ने मिलकर काम किया तो कितनी जल्दी कुंवा खुद गया और इस कुँए से सभी गाँव के लोगों का भला होगा | इसी प्रकार यदि सभी लोग मिलकर एक दूसरे के सुख दुःख में काम आयें तो ऐसी कौन सी विपदा है जो दूर नहीं होगी और ऐसी कौन सी सम्पदा है जो प्राप्त नहीं हो सकती ?
सारे एक दूसरे का मुँह देखने लगे | -विशुद्ध चैतन्य
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