Re: शराबियों की प्रशंसा में
जो मुकुंद्बिहारी स्कूल में गाज़र घास था, कोलेज में चालू पुर्जा बना, नौकरी लगने के बाद पक्का प्रोफेशनल बन गया था | घर से ऑफिस और ऑफिस से घर, यही उसकी ज़िन्दगी हो चुकी थी | मुझसे भी काफी दिनों में ही मुलाकात हो पाती थी | ऐसे में उसका अचानक फ़ोन आना और मुझे ‘लाइट हार्ट बार’ में बुलाना कुछ समझ में नहीं आ रहा था | खैर मैं जब ‘लाइट हार्ट बार’ में पंहुचा तो मुझे देखते ही बोला ‘मुझे पता था की कोई आये ना आये तू जरूर आएगा, बस तू ही अपना सच्चा दोस्त हैं |’ उसका ऐसा बोलना था कि मैं समझ गया की वो कम से कम दौ पेग डाउन हैं | मेने पूछा क्या हुआ तो वो बोलने लगा ‘आज कुछ नहीं बोलेगा, आज बस सेलेब्रशन होगा | वो डायन मुझसे झगडा करके मायके गयी हैं |’ अब मुझे समझते देर नहीं लगी कि वो किसे डायन कह रहा हैं | आगे मैं कुछ उससे पूछता उससे पहले उसने ही सब कुछ बता दिया – ‘ क्या नहीं किया उसके लिए मेने…सिगरेट छोड़ दी …दारू छोड़ दी…ये दौ कौड़ी की नौकरी कर ली…यहाँ तक के अपने माँ-बाप के गाँव जाना भी छोड़ दिया | पर उसने क्या किया मेरे लिये…कुछ नहीं…मेरी सेलेरी पर ऐश करती हैं …मेरा बनाया हुआ खाना खाती हैं और मेरा ही कोई ख्याल नहींरखती साली | मेरे माँ-बाप कभी-कभार यहाँ आते हैं तो उन्हें भी परेशान करके भगा देती हैं | जब से शादी हुई हैं, हंसना भी भूल गया हूँ | दिन भर ऑफिस में मरता रहता हूँ और घर आकर इसके नखरे उठाता रहता हूँ | वीकेंड में भीदिन भर बस मेरी छाती पर ही लौट लगाती हैं | आज उससे बहुत झगडा हुआ और उसको मेने घर से भगा दिया …(फिर थोड़ी देर रुककर)…भगा क्या दिया, खुद ही मुझे छोड़कर चली गयी ‘ (इतना कहना था की उसके चेहरे पे अजीब से ख़ामोशी छा गयी )|
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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