Re: रामराज्य कब आएगा?
हमने काम, क्रोध, धन, मद और लोभ की परिभाषा भी रामायण में पढ़ी. कहा गया कि यदि भक्ति के मार्ग पर चलना है तो इन सभी चीजों दूर रहना होगा. तभी भक्ति की उपयोगिता सार्थक हो सकती है. दूसरी तरफ यह भी कहा जाता है कि हानि-लाभ, यश-अपयश, जीवन-मरण यह सब प्रभु के हाथ में हैं ? आप भी सोच रहे होंगे कि आध्यात्मिक बाते कहाँ से लेकर बैठ गया. पर बात निकली है तो दूर तलक जायेगी. सोच यही है - यह सब सार्थक विश्लेषण है जिनका अमल कठिन है, बाधाये हैं. उनको ऋषि मुनि भी आत्मसात नहीं कर पाए तो हम तो इंसान है. गलतियो की गठरी. फिर भी हम प्रवचन में जाते है और अपने कर्मो की गलतियो को मात्र भक्ति से दूर भागने का प्रयास करते है यह जानते हुए भी कि जो व्यक्ति हमें परमपिता परमेश्वर की उपासना का सन्देश दे रहा है, वह इन सभी बाधाओ से दूर है यदि नहीं है? तो उसकी बात से हम सहमत क्यों हो गए? और इसका ज्ञान उसके पास कहाँ से आ गया?
मेरा मकसद यह कतई नहीं है कि किसी वर्ग विशेष की भावना को ठेस पहुंचे. उसके लिए हम पहिले से ही माफी मांग कर चल रहे है. हम सब माटी के पुतले है. उनमे गलती हो सकती है पर साधु तो जन्म से भगवान् की पूजा अर्चना में लीन है. तो उसके पास तो भगवान् का दिया सब कुछ होगा ही अब भक्त को कुछ चाहिए तो शरण में जाना ही होगा. सच है. पर कौन मानेगा कि भगवान् अगर सुनी अनसुनी करके ही भक्त की परीक्षा ले रहे है तो कौन रोकेगा उनके चक्र को? यही पर तुलसी दास की पक्तिया याद आती है ” पर उपदेश कुशल बहुतेरे” यानी जब समाज को देने को है तो यह उदाहरण दिए जाते है. पर जब खुद पर अमल की बारी आती है तो मुकर जाते है. कई करोड़ भक्त भगवान् से प्रार्थना करते हैं तो भगवन को मान ही जाना चाहिए. पर भगवान् भी उन्ही की सुनता है जो समर्थ है. और समर्थ कुछ भी देकर भगवान को खुश कर ही देता है. जब कि एक कंगले के पास पांच रुपये भी नहीं होते कि वह चढ़ावा चढ़ा सके. तो भगवान् क्यों कर उस कंगले से खुश हो सकता है. पुजारी भी उसी की अर्चना की अर्जी पहिले लगाएगा जो मोटी दक्षिणा दे कर पुजारी को खुश करेगा.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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