Re: अलबेला सा मैं :..........
अलबेला सा मैं अपनी मस्ती में रहता
जो भी हो मेरे मन में झट से कह देता ।
अच्छा लगे तुमको या बुरा मानो तुम
है सीधी मेरे मन की बात बस इतना जानो तुम ।।
मन के घोड़ों पर नहीं डाली कभी मैंने नकेल
पर मन की बात कहना भी नहीं है बच्चों का खेल ।
बच्चे होते तो कह भी लेते सीधी सपाट बात
पर लोगों ने तो बिछा रखी है मन में शतरंजी बिसात ।।
नहीं होता आसान अपने मन की बात कहना
छोड़ आडम्बर, सरल और सहज रहना |
अहं को है मरना पड़ता बारम्बार
क्रोध पर बनी रहती नज़र लगातार ।।
व्यंग, मन की बात कहने में, है बहुत काम आता
हँसते हँसते बातों बातों में सब कुछ टाल जाता ।
कवि का मन है, जो इसमें आएगा सो बोलेगा
लाला की दूकान नहीं जो हर चीज़ पहले तोलेगा ।।
अच्छा लगता है मुझको मस्त मन से रहना
सम भाव से अपने मन की बात कहना ।
फिर भी हो जाते हैं कभी कभी लोग मुझ से नाराज़
तभी बोला मेरा मन लिख दे इस पर भी कविता आज ।।.........
(अंतरजाल से)
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