Re: इधर-उधर से
दोनों के शव जहां पड़े थे, वहां से हो कर दूसरे दिन प्रातःकाल सैर के लिये जाते हुये जब दो सखिया गुजरीं तो एक सखी को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि ये मृग मृगी कैसे मर गये? न तो इनके शरीर में किसी रोग के लक्षण दिखाई पड़ते हैं और न ही इनके टन बाण से बिंधे हुये हैं. यह देख कर उसने अपनी सखी से पुछा,
“खड़यो न दीखे पारधी, लग्यो न दीखे बाण i
मैं तन्ने पूछूं हे सखी, किस बिध तज्या पिराण ii”
(न कोई शिकारी खड़ा दीखता है और न इनको कोई बाण ही लगा दीखता है. अतः हे सखी, मैं तुझसे पूछती हूँ कि इन्होने प्राण कैसे तज दिए)
दूसरी सखी जो अधिक सयानी थी, अनुमान से सब कुछ समझ गयी. उसने कहा,
“जल थोड़ो नेहो घणो, लग्या प्रीत का बाण i
तू पी तू पी करत ही, दोन्यूँ तज्या पिराण ii”
(श्री भागीरथ कनोड़िया की कथा से प्रेरित)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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