Re: साक्षात्कार
Quote:
Originally Posted by Kumar Anil
बहुत मनोरंजक वाक़िया शेयर करूँगा , आप भी बिना हँसे नहीँ रहेँगे । लगभग 15 वर्ष का था । एक दूसरे शहर मेँ किराये के मक़ान मेँ रहता था । नीचे पोर्शन मेँ मकान मालिक की नातिन भी रहती थी । जो मेरी समवयस्क थी । किशोरावस्था के आकर्षण मेँ आँखेँ चार हो गयीँ । उसको देखकर गाने भी फूटने लगे । एक दिन माक़ूल समय देखकर किसी लड़की को पहली पाती देने का साहस एकत्र कर ही लिया । अपने कमरे मेँ जहाँ वो बैठी थी , एक खिड़की थी और मैँने चाँद सितारोँ से सजी हुई शायरियोँ वाला लेटर बिना कुछ बोले डाल दिया । पर हाय री मेरी क़िस्मत मेरे दिल की शहज़ादी उड़नछू हो चुकी थी और वो ख़त हाथ लगा उनकी माताश्री के । मैँ तो आशवस्त था कि वो ख़त उन्हेँ मिल चुका होगा । लिहाजा शाम को स्कूल से आने के बाद उसके कमरे के पास चकरघिन्नी होने लगा । पर वहाँ तो सन्नाटा पसरा हुआ था । फिर ध्यान दिया तो मेरी माँ भी ख़ामोश दिखी । माज़रा समझ नहीँ पाया कि समझना नहीँ चाहता था । ख़ैर साहब थोड़ी ही देर मेँ मेरे बड़े भाईसाहब आ गये और फिर उनकी चप्पल मेरे गाल । पूरा ख़त पढ़वाते रहे और आशिक़ी का भूत भगाते रहे । आज जब सोचता हूँ तो अपनी नादानी पर बरबस ही मुस्कुरा पड़ता हूँ । शायद आपके होठोँ पर भी मुस्कान खेलने लगी । ईश्वर करे ऐसे ही हँसते रहिये ।
|
इससे क्या शिक्षा मिली
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
|