Re: इधर-उधर से
सुरक्षा गार्ड और सुरक्षा
(इंटरनेट से)
कुछ समय पूर्व एक सर्वे किया गया, जिसके तहत इस बारे में रिसर्च की गई थी कि कुछ कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटीज में अक्सर चोरी-डकैती की घटनाएं क्यों होती हैं, जबकि अन्य सोसायटीज में ऐसा कुछ नजर नहीं आता? इससे मिले नतीजे चौंकाने वाले थे। जिन सोसायटीज में सुरक्षा गार्ड आने-जाने वाले लोगों को सलाम ठोकता रहता है, वहां पर लूटपाट या चोरी-डकैती की घटनाएं सामने नहीं आतीं, लेकिन जहां पर सुरक्षा गार्ड सोसायटी के कुछ ही लोगों (मसलन कमेटी के सदस्यों) को नमस्कार या सलाम करते हैं, वहां इस तरह की घटनाएं अमूमन देखी जाती हैं। आपको यह निष्कर्ष अजीब लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में तथ्य यही है। जब कोई सुरक्षा गार्ड किसी को सलाम करता या उससे गुड मॉर्निंग, गुड आफ्टरनून या गुड नाइट कहता है, तो इसमें उसकी मुंह और हाथ की मांसपेशियां भी हरकत में आती हैं, जो परोक्ष तौर पर मस्तिष्क को सजग रहने के लिए चेता देती हैं।
जापान में ट्रेन के किसी भी सिग्नल पर पहुंचने पर उसका ड्राइवर अपना हाथ उठाकर सिग्नल की ओर इशारा करता है और जोर से बोलता है कि सिग्नल लाल है या हरा। वह सिग्नल के रंग के बारे में खुद को जोर-से बोलकर सुनाता है और अपनी उंगली से इसकी ओर इशारा भी करता है। ऐसा करते हुए ड्राइवर यह सुनिश्चित करता है कि उसने सिग्नल की गलत पहचान नहीं की है। जापानी भाषा में इस विधि को 'शिसा कांको' कहते हैं। इसे अपनाने से मानवीय चूक के चलते होने वाली दुर्घटनाओं की दर तीन फीसदी से गिरकर एक फीसदी तक आ गई है।
मैंने इसके बारे में 1985 में ‘द जापान टाइम्स’ के एक अंक में पढ़ा था और तबसे ही मैं अपने बैंक लॉकर को ऑपरेट करते समय इसका इस्तेमाल करता चला आ रहा हूं। बैंक लॉकर को ऑपरेट करने के बाद वहां से निकलने पर अक्सर मेरे दिमाग में यह शंका उभरने लगती कि 'क्या मैंने तमाम जेवरात वापस लॉकर में रख दिए हैं?', 'क्या मैंने लॉकर को ढंग से लॉक कर दिया है?' इत्यादि-इत्यादि। ऐसी शंकाओं से बचने के लिए मैं खुद से जोर से कहता हूं कि मैंने तमाम चीजें वापस लॉकर में रख दी हैं और इसे समुचित रूप से बंद भी कर दिया है। वैसे भी लॉकर रूम में उस वक्त लॉकर मालिक के अलावा कोई नहीं रहता।
हम में से कई लोगों को किसी फैमिली फंक्शन के लिए घर से निकलने के बाद इस तरह की चिंताएं सताने लगती हैं कि क्या हमने नल की टोंटी खुली तो नहीं छोड़ दी, हम मास्टर बेडरूम की लाइट-पंखे वगैरह स्विच ऑफ करके आए हैं या नहीं, या फिर कहीं हम घर की चाभी तो नहीं भूल आए। ऐसा ख्याल मन में आते ही हम अपनी जेब या बटुआ टटोलने लगते हैं और चाबियां मिल जाने पर राहत की सांस लेते हैं।
मेरे कई दोस्त भी इस 'शिसा कांको' तकनीक को अपनाने लगे हैं, जिससे उन्हें अब अपने घर से या लॉकर ऑपरेट कर बैंक से निकलने के बाद इस तरह की शंकाएं नहीं घेरतीं।
तकनीक इस तरह की घटनाओं को रोकने का एक तरीका हो सकती है, लेकिन ऑपरेटिंग टेक्नोलॉजी में इंसानी दखल जरूरी हो जाता है, ताकि थकान या उदासीनता के चलते किसी तरह की चूक या लापरवाही आपके समक्ष तुरंत उजागर हो सके।
^^
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 14-04-2014 at 10:58 AM.
|