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Originally Posted by bond007
तो क्या हमें इस सपने को पूरा करने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए और इस तरफ अपना एक छोटा सा कदम बढ़ाना भी फ़िज़ूल समझना चाहिए!
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पूर्णतया सहमत !
दुष्यन्त जी के शब्दोँ मेँ....
कौन कहता है आसमां मेँ सुराख़ नहीँ होता ,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारोँ ।