Re: दिल खेलोँ का मैदान है...
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Originally Posted by आकाश महेशपुरी
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दुनिया कैसे मुझको जाने
ये तो बस मौका पहचाने
रहता हूँ छप्पर के नीचे
सच्चाई की चादर ताने
शायद वजह यही है मुझसे हर कोई अनजान है-
खेलो जितना जी चाहे दिल खेलोँ का मैदान है...
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बहुत मनोहर एवम् भावपूर्ण गीत हमसे शेयर करने के लिये आपका धन्यवाद. आपके गीतों को आसानी से संगीतबद्ध किया जा सकता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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