13-05-2014, 09:45 PM
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#235
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Re: इधर-उधर से
प्रसाद :
एक बार मेरी माताश्री मंदिर से प्रसाद लेकर आयीं। प्रसाद के वे लड्डू देकर उन्होंने मुझसे कहा "बेटा मोहल्ले में प्रसाद बाँट दे।" मैं आस-पड़ोस के घरों में प्रसाद बाँटने चल निकला।
पड़ोस ही में एक युवा छात्र अकेला रहता था, उसके कमरे पर भी मैं गया। हाथ में एक लड्डू उसकी ओर करते हुये मैं बोला "ये लड्डू ले लो।"
उसने कहा "धन्यवाद, लेकिन लड्डू मुझे पसंद नहीं हैं।"
मैं बोला "भैया ये प्रसाद के लड्डू हैं"
उसने चेहरे के भाव तुरंत बदले, और उसने कहा "ओह, प्रसाद है? तब खा लूंगा।"
उसकी हथेलियाँ अंजलि बनाकर मुझसे लड्डू गृहण कर चुकीं थीं। जो लड्डू उसे १ मिनट पहले तक पसंद नहीं थे, अब वह उन्हीं लड्डुओं को हाथ जोड़कर पूरी श्रद्धा से खा रहा था।
यदि हम सब कुछ भगवान का प्रसाद मानकर गृहण करें, तो दुख को भी सुख में बदलते देर नहीं लगेगी। इसी का नाम है प्रसादबुद्धि!
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