Re: विजेता
क्या सोचकर दिया वोट? महिलाओं को मोदी लगे ज्यादा भरोसेमंद
डॉ. अनिता सिंह, प्रोफेसर, जेएनयू
इस बार का चुनाव कई मामलों में ऐतिहासिक है। संकुचित जाति और धर्म के आधार पर वोट के बंटवारे से उठकर राष्ट्र की एक बड़ी छवि इस बार उभरी है। इस सबसे बढ़कर महिला वोटरों और महिला प्रत्याशियों ने चुनावों में जिस एजेंडे के साथ भाग लिया वह खुद उनका था। ये पहले से साफ था कि 2012 में हुए निर्भया केस के बाद महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा प्रमुख बनेगा। शहरी महिलाओं ने बलात्कार और शारीरिक शोषण से सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाने की बात को जहन में रखकर वोट दिया। जबकि ग्रामीण महिलाओं के वोट डालने के अपने अलग एजेंडे थे। उत्तर पश्चिमी इलाके जैसे सहारनपुर से दिल्ली और हरियाणा में महिलाएं घरेलू हिंसा और शराब की दुकानों को लेकर चिंतित थी। उन्होंने प्रत्याशियों का चुनाव इस आधार पर किया कि वह इन मसलों को सुलझाने पर किस हद तक सक्षम है। कई जगहों पर दिमाग में ये भी रहा कि माताएं अपनी बेटियों को स्कूल भेज पाए इसलिए कॉलेज जाने को साधन जुटें और गांव में स्कूल खुले। गंगा बेल्ट से बाहर महिलाओं ने उन्हें भी वोट दिया जो उन्हें घर तक पीने का पानी सप्लाय कर सके। जाति के आधार पर कोई वोट नहीं पड़ा। महिलाएं जो मायावती की पारंपरिक वोटर थी उन्होंने भी अपनी बहनजी का साथ छोड़ यू-टर्न लिया। उन्हें चुना जो रोजगार दे सके। नरेगा और एनएचआरएम पर कांग्रेस को समर्थन की अपेक्षा थी। लेकिन महिलाओं ने उन्हें इन प्रोजेक्ट्स में घूसखोरी के लिए कोसा। रसोई गैस और राशन के सामान से बढ़े परिवार के बजट ने उन्हें कांग्रेस के प्रत्याशियोंं के खिलाफ वोटिंग को मजबूर किया। महिलाओं ने आम आदमी पार्टी को भगोड़ा कहते हुए दूरी बना ली। उन्हें लगा आप पार्टी गैरअनुभवी और गैरभरोसेमंद युवाओं की फौज है। यही कारण था कि महिलाओं की वोटिंग परंपरा के विरुद्ध लेकिन भाजपा के पक्ष में हुई।
'मोदी के जमीनी होने से महिलाओं का उनपर भरोसा बढ़ा, यही कारण था कि महिलाएं उन्हें अपने जैसा समझने लगीं।'
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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