Re: लघुकथाएँ
दाव पेंच [लघुकथा] - मुकेश पोपली
‘यह बहुत गलत बात है कि इतने सालों तक कल्*पतरु जी को मान्*यता ही नहीं दी गई, वह तो ईश्*वर के घर के वो अवतार हैं जो पृथ्*वी पर केवल कविता रचने के लिए ही आए हैं, मगर हम सबकी आंखों पर मोह-माया का पर्दा इस तरह पड़ा हुआ था कि हम अपने बीच में उपस्थित इस अवतार द्वारा रची गई लीला को पहचान ही नहीं पाए। आज इस समारोह में इनकी कविता के सम्*मान के यह क्षण इतिहास रच रहे हैं और आज का दिन साहित्*यकारों के लिए स्*वर्णिम दिन कहलाया जाएगा, मेरी ओर से इन्*हें बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं।’ तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मुख्*य अतिथि मेहता जी द्वारा कल्*पतरु जी को श्रीफल और एक लाख रुपए का चैक शॉल ओढ़ाकर प्रदान किया गया ।
कल तक कल्*पतरु के घोर विरोधी और बात-बात पर उनका अपमान करने वाले मेहता जी द्वारा तारीफों के पुल बांधे जाने से कल्*पतरु के अन्*य विरोधियों के साथ-साथ उनकी खास मित्र-मंडली भी हैरान थी ।
‘प्*यारे साथियो, पुरस्*कार कब्*जे में बर लेने के बाद इस मेहता को मैंने दस हजार रुपए में खरीद लिया और मनचाहा भाषण उसके सामने रख दिया,’ कल्*पतरु जी बंद कमरे में अपने खास दोस्*तों की जिज्ञासा शांत कर रहे थे, ‘इसके अतिरिक्*त हमारी समिति के सभी लेखकों की किताबों की खरीद के लिए भी उससे अनुशंसा प्राप्*त कर ली है, जिससे पिछले तीन वर्षों में छपी हम सबकी किताबें खरीद ली जाएंगी और प्रकाशक द्वारा रॉयल्*टी के तौर पर हम लोग तीस प्रतिशत कमीशन पाने के अधिकारी होंगे ।’
‘वाह-वाह’, ‘बहुत बढि़या’, जैसे जुमलों के बीच पुरस्*कार हथियाने और मेहता को खरीदे जाने की खुशी में जाम आपस में टकराने लगे थे ।’
**********
__________________
मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
|