Re: विभाजन कथा: रफूजी
आँगन में कदमों की आवाजें। नानी कमर पर हाथ रख चारपाई पर अध-उठ गई। अध-अंधी है। नजर बाँध कर कदमों को, आवाजों को, जिस्*मों के साथ जोड़ने की कोशिश की, लेकिनकोशिश, नाकाम।
'कोण। किस नूँ मिलना है? घर कोई नहीं। शाम नूँ आणा।'
नानी की आवाज सुन कर नीम पर बैठे कौवे ने गर्दन घुमाई। कहीं कोई खतरा नहीं। फिर भी एक टहनी से दूसरी टहनी पर छलाँग गया।
'नानी, तेरी तो आँखें भी गईं। चल, फिकर न कर, आँखों के बैंक से किसी जवान कुड़ी की आँखें तुझे डलवा देंगे। मरने से पहले जहान तो देख लेगी।'
'जीते, तू मोया साठ का हो गया, लेकिन जबान अब भी कैंची की कैंची। मैं मरनेवाली नहीं। तेरा संसकार करके ही जाऊँगी। खातिर जमा रख।'
'नानी, बैंक से आँखें ला दूँ? एकदम जवान हो जाएगी।'
'कौन। मल्कियत। नानी को जवान बनाएगा। मोया फिर सात फेरे भी लेगा न। तेरी घरवाली तो कब की मर गई, मुझे घर ले चलना। इस उमर में लुत्तर-लुत्तर तो बंद होगी।'
सरपंच सुरजीत सिंह ने नीम के नीचे दूसरी चारपाई बिछाई, तहमद टखनों तक खींची और पसर गया। नानी को फिर छेड़ा, 'नानी, बैंक से आँखें...'
'चुप ओए मोया। जीभ में कीड़े पड़ेंगे कीड़े। मुझे बेवकूफ बनाता है। बंक में तेरे बाप रुपए देते हैं कि आँखें...? तू तो अपनी माँ को भी ऐसे ही छेड़ता था।'
नानी को अचानक याद आया कि मल्कियत सिंह बिलकुल चुप है। जरूर कोई बात होगी, वरना यह तो कैंची है, कैंची - लगातार चकट-चकट करती हुई।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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