Re: विभाजन कथा: रफूजी
'अच्*छा पुत्तरो, तुसी चलो, साईं रखे।'
दोनों ने आज पहली बार नानी को वहाँ से जाने से पहले छेड़ा नहीं।
कौवे फिर नीम के पेड़ पर लौट आए। काँव-काँव, रोटी दे-रोटी दे की रट लगा दी। नानी ने उन्*हें गाली दी, 'मोये, मरे जाते हैं। थोड़ा-सा भी सबर नहीं।' चारपाई सेउतरी। कमर पर हाथ रखे, लचीले बाँस का-सा दोहरा हो कर मुड़ गया शरीर अब अंदर की तरफ घिसटना शुरू हुआ। साथ-साथ यादें भी।
हाँ, दिल्ली के दंगों के बाद इंदर का सिर हिंदुओं ने फोड़ दिया। वह सरेआम उन्*हें गालियाँ जो देता था। यह बात तो नानी को कल की तरह याद है। अभी अतीत की धूल इनदृश्*यों पर जमी जो नहीं।
दिल्*ली से सिखों के कुछ परिवार यहाँ के गुरुद्वारे में रफूजी बन कर आए थे। नानी भी गाँव की औरतों के साथ रोटियों की पोटली बना कर वहीं गई, उनसे मिलने। वह कहीअतीत-वर्तमान के बीच जिंदा है। सहमी बैठी औरतों से पूछा था –
'क्*यों, पाकस्*तान ने आए हो जी?'
लुट-पुट कर आई एक बूढ़ी औरत का चेहरा तमतमाया, शायद कोई कड़ा जवाब देने लगी। गाँव की औरतों ने उसे सैनत की, अपने सिर को हाथों से छू कर इशारे से बताया कि नानीके दिमाग के पुर्जे ढीले हैं। एक ने समझाया, 'नानी, एह लोग दिल्*ली से आए ने।'
नानी से अध-अंधी आँखें फाड़-फाड़ कर सबकी तरफ देखा। हथेली की छतरी आँखों के आगे हाथ से बनाई। कुछ बच्*चों के सहमे हुए चेहरे दृष्टि-दायरे में आए। उसने फटे ढोलकी आवाज में अपने गाँव की औरत को डाँटा, 'दिल्*ली तो आए ने? हाय रब्*बा, यह दिल्*ली में पाकस्*तान कब बनगया। मुसलमानों ने मारा है?'
'न, नानी, हिंदुओं ने घर फूँक दिए, मरदों को जिंदा जला दिया।'
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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