Re: विभाजन कथा: रफूजी
नानी ने एक बच्*ची के सिर पर हाथ रखा। बच्*ची सुबकना शुरू हो गई।
'न पुत्तर, रोंदे नहीं। देखना, कल जवाहरलाल आएगा। तुम सबको मकान देगा राशन भी देगा। हम पाकस्*तान बनने पर कुलछेतर आए थे, हाँ। हर महीने जवाहरलाल कंप में आता था।एक साल में सब को फिर से बसा दिया। मेरी गल पल्*ले बाँध लो। उसे पता चल गया होगा, कल जरूर आएगा।'
कुछ बच्*चे हँस पड़े। एक ने दूसरे को इशारे से समझाया कि बुढ़िया बिलकुल पागल है। उस अधेड़ औरत ने नानी को बताया, 'नानी, जवाहालाल तो कब का मर गया, अब कहाँ सेआएगा?'
'चुप्*प नी, जवाहर जरूर आएगा। बड्डी आई नानी नू बेवकूफ बनाणवाली।'
अपने गाँव की औरत ने याद दिलाया, 'नानी, तेरे दिन पूरे हो गए लगते हैं। तुझे तो कुछ याद नहीं रहता। ट्रक में बैठ कर दिल्*ली गई थी कि नहीं, जवाहरलाल के अंतमदरशन करने।'
नानी हक्*की-बक्*की। याददाश्*त ने छोटी-सी छलाँग लगाई - हाँ, दिल्*ली तो गई थी, किसके मरने पर? मात्*मा गांधी मरे था, तब न। कुड़ी ठीक कहँदी होएगी। जवाहर भी मरगया होएगा।
नानी ने अपने हाथों से पतीलों से सबको दाल परोसी। चुन्*नी के किनारे में बँधी गाँठ खोली, हाथ से छू कर बच्*चों को पैसे बाँटे, 'जाओ पुत्तर, लाले की दुकान सेचीजी खा लो। नानी रोज आएगी। अपने छोनो-मोनो को चीजों के पैसे देगी। खब्*बरदार जे कोई रोया ते। कल जवाहर आएगा। हाँ, कुलछेतर आता था तो मुट्ठियाँ भर-भर बच्*चों कोपैसे देता था। तुहानूँ वी देगा।'
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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