Re: विभाजन कथा: रफूजी
हम चाहे सो जाएँ, लेकिन स्*मृतियाँ तो हमेशा जागती रहती हैं, इन्*हें कभी नींद नहीं आती। नानी के सोए मन-माथे में उसके तीन जवान लड़के उग गए। लगातार लंबे होतेहुए। बुरछे जैसे जवान। इतने बड़े हो गए, फिर भी उनके कानों के पीछे नानी काला टीका लगाती थी। बड़ा बहुत गुस्सैल था। एक बार माँ को टोका था, 'टीका-फीका मत लगायाकर, यार लोग मखौल उड़ाते है।' नानी ने गाली दे कर उसे बताया था कि मरजाणे किसी की नजर खा जाएगी। बड़े ने माँ को घूरा और सख्*त आवाज में जो कहा, वह वाक्य अब भीनानी के दिल पर खुदा हुआ है –
'कोई माँ का जाया नजर उठा कर देखेगा, तब ही नजर लगेगी न। है कोई बब्*बर शेर तो मेरी तरफ देखने का हौसला करे।' उसने अपनी हथेली से कान के पीछे लगा टीका पोंछा औरदनदनाता हुआ बाहर निकल गया था।
दूसरा दृष्य अँधेरी कोठरी से बाहर निकला। पहले बलवइयों ने बड़े के टुकड़े-टुकड़े किए थे, फिर दो छोटे भाइयों के। उसे जिंदा छोड दिया था, ताकि ताउम्र कलेजा जलतारहे। लेकिन बड़े की शकल क्*यों बदल रही है। उसके कटे सिर की जगह अपने दोहते इंदर का सिर क्*यों कर लग रहा है। नानी की नींद एक झटके से खुली, बिना कमर पर हाथरखे चारपाई पर उठ बैठी। हथेलियाँ मुँह पर फेरी। सारे दृष्य वापस अपनी गार में भाग गए। उसने खुद से कहा, 'हे रब्बा, खैर रख दिन को सपने आना तो चंगा नहीं होता।मेरा इंदर क्*यों कर सपने में आया। कहीं टक्कर तो नहीं...'
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 26-05-2014 at 11:25 AM.
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