Re: शेखचिल्ली
शेखचिल्लीने रस्सी ने खुरपा बाँधा और उसे कुएँ में लटकाकर खूब गोते लगवाया। थोड़ी देर बादउसने उसे ऊपर खींचा। खुरपा ठंडा हो चुका था। चिल्ली ने हकीम साहब को धन्यवाद दिया।
संयोगवश एक दिन हकीम साहब के दूर की एक रिश्तेदार को तेज बुखार हो गया था।वह बूढ़ी उन्हीं से अक्सर दवाई लेने आती थी। वह शेखचिल्ली के पड़ोस में रहतीथी।
चिल्ली ने देखा कि तेज बुखार से तपती हुई उस सत्तर वर्ष की बुढ़िया कोलोग हकीम साहब के पास ले जाना चाहते हैं।
शेखचिल्ली को शरारत सूझी। उसनेहकीम साहब को बताया हुआ नुस्खा उन्हें बताते हुए कहा कि, ‘हकीम साहब जो वहाँबताएँगे, मैं यहीं बताए देता हूँ। दादीजान को तेज बुखार है। यह गरम खुरपे-सी तप रहीहै। इसका सबसे अच्छा इलाज यह है कि इन्हें किसी कुएँ या तालाब में खूब अच्छी तरहडुबकी लगवाओ। बुखार नाम की चीज सदा के लिए दूर हो जाएगी। यह तरकीब मुझे हकीम साहबने खुद बताई थी।’
लोगों ने शेखचिल्ली की बात मान ली और बुढ़िया को एक पीढ़ेपर बैठाकर रस्सियों से बाँधकर कुएँ में लटका दिया। कुएँ के पानी में बुढ़िया को खूबडुबकियाँ लगवाई गईं। कई डुबकियाँ लगवाने के बाद जब बुढ़िया को बाहर निकाला गया तोवह ठंडी पड़ चुकी थी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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