Re: कोलुशा > मैक्सिम गोर्की
मैंने अभिवादन में एकाध शब्द कहा और पूछा कि यहाँ कौन सोया है।
‘मैरा बेटा,” उसने भावशून्य उदासीनता से जवाब दिया।
“बड़ा था?”
“बारह बरस का।”
“कब मरा?”
“चार साल पहले।”
उसने एक गहरी साँस ली और बाहर छिटक आयी लट को फिर बालों के नीचे खोंस लिया। दिन गरम था। सूरज बेरहमी के साथ मुर्दों के इस नगर पर आग बरसा रहा था। कब्रों पर उगी इक्की-दुक्की घास तपन और धूल से पीली पड़ गयी थी। और धूल-धूसरित रूखे-सूखे पेड़, जो सलीबों के बीच उदास भाव से खड़े थे, इस हद तक निश्चल थे मानो वे भी मुर्दा बन गये हों।
“वह कैसे मरा?” लड़के की कब्र की ओर गरदन हिलाते हुए मैंने पूछा।
“घोड़ों से कुचलकर,” उसने संक्षेप में जवाब दिया और अपना झुर्रियाँ-पड़ा हाथ फैलाकर लड़के की कब्र सहलाने लगी।
“यह दुर्घटना कैसे घटी?”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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