गंगा से कावेरी तक
गंगा से कावेरी तक
साभार: शैलेन्द्र चौहान
नौ जुलाई की सुबह। आसमानपर बादल छाए हुए हैं। हल्की हल्की धूप उनमें से छनकर नीचे आ रही है। गंगाकावेरी एक्*सप्रेस अपनी मध्यम रफ्तार से बढ़ी जा रही है चेन्नई की ओर। वहऊपर की बर्थ पर आकर लेट गया। उसका मन हो रहा है कि नीचे खिड़की के पास बैठकरगुजरती हुई चीजों को देखे। पावस की रुपहली आभा, हरे पेड़, पहाड़। परखिड़कियों के पास लोग पहले से ही बैठे हैं।
न जाने क्यों अक्*सर वहक्रम से कुछ सोच ही नहीं पाता। हाँ, सोचना शुरू करता है, तो उसे पर लग जातेहैं। अतीत की किसी घटना को भविष्य की रील पर कस देता है और फिर शुरू होती हैउड़ान, जिसका कोई अंत नहीं, सब कुछ सुखद मनमाफिक, फिर अचानक ब्रेक लग जाताहै। नीरा ने कहा था- बस ज्यादा योजनाएँ मत बनाओ, जब फाइनल पोस्टिंग हो जाएतब सोचना। वह रुक गया था। उसकी आदत है इस तरह सोचना! उसने तर्क दिया ‘सोचनेसे अवचेतन की इच्छाएं संतुष्ट होती हैं। जिंदगी में बहुत कुछ किया नहीं जासकता, बस सोचकर ही थोड़ा खुश हुआ जा सकता है।‘ नीरा चुप हो गई थी। बहुत कमदिनों में ही शायद वह उसकी इस आदत से वाकिफ़ हो चली थी। आठ तारीख को इलाहाबादछोड़ने के बाद उसे कुछ रिलीफ सा मिला था। न जाने क्यों यूँ यात्राओं सेअक्सर उसे डर लगता है। फिर यह तो बहुत लंबी यात्रा थी। इलाहाबाद से चेन्नई ।पर इस बार वह कुछ सामान्य था। ए.सी. स्लीपर में उसे बर्थ मिल गई थी आराम सेचेन्नई पहुँचना था, कंपनी के किराए से।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-06-2014 at 10:38 AM.
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