Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by dr.shree vijay
तू राह में सोता है वो भी तो मुसाफिर है
मंजिल पर पहुँचकर जो आराम नहीं करते.........
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-आरिफ बीकानेरी
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तुम क्या बदले सारे मौसम ..... बदले-बदले रहते हैं
सारी बारिश बीत गयी पर घर में न आई सीलन तक
या रब मुझको ग़म की दौलत देनी है तो इतनी दे
शहरे-ग़ज़ल में चर्चे हों और देख के रो दें दुश्मन तक
(बद्र वास्ती)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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