Re: कहानी/ गिरगिट/ अंतोन चेखव
"हुजूर! मालूम पड़ता है कि कुछ झगड़ा-फसाद हो रहा है!" सिपाही बोला।
आचुमेलोव बाईं ओर मुड़ा और भीड़ की तरफ चल दिया। उसने देखा कि टाल के फाटक पर वही आदमी खड़ा है। उसकी वास्कट के बटन खुले हुए थे। वह अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाये, भीड़ को अपनी लहूलुहान उंगली दिखा रहा था। लगता था कि उसके नशीले चेहरे पर साफ लिखा हुआ हो "अरे बदमाश!" और उसकी उंगली जीत का झंडा है। आचुमेलोव ने इस व्यक्ति को पहचान लिया। यह सुनार खूकिन था।भीड़ के बाचोंबीच अगली टांगे फैलाये अपराधी, सफेद ग्रे हाउंड का पिल्ला, छिपा पड़ा, ऊपर से नीचे तक कांप रहा था। उसका मुंह नुकिला था और पीठ पर पीला दाग था। उसकी आंसू-भरी आंखों में मुसीबत और डर की छाप थी।
"यह क्या हंगामा मचा रखा है यहां?" आचुमलोव ने कंधों से भीड़ को चीरते हुए सवाल किया।"यह उंगली क्यों ऊपर उठाये हो? कैन चिल्ला रहा था?"
"हुजूर! मैं चुपचाप अपनी राह जा रहा था, बिल्कुल गाय की तरह, " खूकिन ने अपने मुंह पर हाथ रखकर, खांसते हुए कहना शुरू किया, "मिस्त्री मित्रिच से मुझे लकड़ी के बारे में कुछ काम था। एकएक, न जाने क्यों, इस बदमाश ने मरी उंगली में काट लिया। ..हुजूर माफ करें, पर मैं कामकाजी आदमी ठहरा, ... और फिर हमारा काम भी बड़ा पेचिदा है। एक हफ्ते तक शायद मेरी उंगुली काम के लायक न हो पायेगी। क मुझे हरजाना दिलवा दीजिए। और हुरूर, कानून में भी कहीं नहीं लिखा है कि हम जानवरों को चुपचाप बरदाश्त करते रहें। ..अगर सभी ऐसे ही काटने लगें, तब तो जीना दूभर हो जायेगा।"
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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