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Originally Posted by dr.shree vijay
हम समझते हैं मुहब्बत के तकाजे लेकिन
कैसे उस दर पे कोई बन के सवाली जाये.........
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ये किस मकाम पे पहुंचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख्तियार नहीं
अभी न छेड़ मुहब्बत के गीत ए मुतरिब
अभी हयात का....माहौल खुशगवार नहीं
(मुतरिब = गायक) - साहिर लुधियानवी