Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by rajnish manga
ये किस मकाम पे पहुंचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख्तियार नहीं
अभी न छेड़ मुहब्बत के गीत ए मुतरिब
अभी हयात का....माहौल खुशगवार नहीं
(मुतरिब = गायक) - साहिर लुधियानवी
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हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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