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Old 23-07-2014, 11:31 PM   #249
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

आधे घंटे का एकांत चिंतन प्रतिदिन

हम में से ऐसे कई लोग हैं, जो अकेलेपन से घबराते हैं. हम हमेशा चाहते हैं कि कोई न कोई हमारे पास हो, जिससे हम बातें कर सकें. यदि मजबूरीवश हमें घर में अकेला रहना पड़े, तो हम टीवी, गानों, किताबों, इंटरनेट, अपने पालतू का सहारा लेते हैं.इस तरह हम सिर्फ अपने दिमाग में तरह-तरह के विचारों को भरना चाहते हैं, ताकि हमारा ध्यान अपनी समस्याओं, चिंताओं, चुनौतियों, बोरियत से हट जायें. लेकिन यदि हम सफल लोगों की दिनचर्या देखें, तो हमें पता चलेगा कि वे सभी तमाम जिम्मेवारियों, लोगों से मीटिंग्स, इंटरव्यूज, काम के बावजूद कुछ घंटे अपने चिंतन के लिए अवश्य निकालते हैं. इस तरह वे खुद के बारे में सोचते हैं. वे अपनी समस्याओं के हल खोजते हैं, आगे की प्लानिंग करते हैं, निर्णय लेते है कि क्या सही है, क्या गलत.अमेरिका में एक प्रोफेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत 13 विद्यार्थियों को दो सप्ताह तक हर दिन एक घंटे तक एकांत में रहने के लिए कहा गया. उनसे कहा गया कि वे सारी बाधाओं से दूर, बिल्कुल एकांत में किसी भी घटना के बारे में रचनात्मक रूप से सोचें.

यकीन मानिए, दो सप्ताह बाद उन विद्यार्थियों के व्यवहार में अंतर आ चुका था. वे आत्मविश्वास से भरे थे. उन्होंने अपनी कई समस्याओं का हल खोज निकाला था. उन्होंने कई बड़े ऐसे निर्णय लिये, जो 100 प्रतिशत सही थे, जिसके लिए वे काफी लंबे समय से परेशान थे.मेरे एक मित्र ने अपना एक अनुभव सुनाया. उसने बताया कि कुछ दिनों पहले ही उसका एक सहकर्मी से बहुत बड़ा झगड़ा हो गया. उसने आक्रोश में आकर इस्तीफा टाइप किया और बॉस को मेल कर दिया. बॉस ने उसे केबिन में बुलाया और कहा कि इस बात पर आराम से सोचो. इस घटनाक्रम पर शांत दिमाग से एकांत में बैठ कर चिंतन करो और दो दिन बाद अपना निर्णय लो.दोस्त ने ऐसा ही किया. उसने सुबह के शांत माहौल को चुना और कॉफी पीते हुए उस झगड़े पर सोचा. कई घंटे बीतने के बाद उसे अहसास हुआ कि गलती उसकी ही थी. उसके गुस्से ने बात को बिगाड़ दिया. उसे इस्तीफा नहीं देना चाहिए था. उसे तो सहकर्मी से माफी मांगनी चाहिए थी. वह दूसरे दिन ही ऑफिस गया और उसने उस साथी को सॉरी कहा.

बात पते की

हर दिन कम-से-कम तीस मिनट पूरी तरह एकांत में जरूर रहें. इससे आपके जीवन में, सोचने के तरीके में बहुत अंतर आयेगा.आप एकांत में किसी समस्या या विषय पर निरपेक्ष ढंग से सोचें और इससे आपको सही जवाब मिल जायेगा. यह खुद को जानने का अचूक तरीका है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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