Re: प्राचीन सूफ़ी संत और उनका मानव प्रेम
ज़ियारत क्षेत्र: एक परिचय
शेख निजामुद्दीन उत्तर प्रदेश के बदायूं में पैदा हुए थे। अपने वालिद के इंतकाल के बाद वह पांच साल की उम्र में 1241 में अपनी मां के साथ गियासपुर में आकर बस गए थे। वह शेख फरीद के मुरीद बन गए जिन्होंने बाद में उन्हें अपना वारिस बना दिया। शेख निजामुद्दीन का खानकाह जिस जगह था वह अब हुमायूं के मकबरे के अहाते में है और उसे चिल्ला शरीफ के नाम से जानते हैं।
हजरत निजामुद्दीन का इंतकाल 1325 में हुआ और उनके वास्तविक मकबरे का अब नामोनिशान नहीं है। बादशाह फीरोज शाह तुगलक ने बाद में उनका आलीशान मकबरा बनवाया। उनकी मौजूदा दरगाह को 1562-63 में बादशाह अकबर के वजीर फरीदुन खान ने बनवाया था जिसकी कई बार मरम्मत की जा चुकी है। दरगाह एक चौकोर इमारत है जिसके चारों तरफ बरामदे हैं। इसके अंदर जाने के लिए मेहराबदार दरवाजे से होकर गुजरना होता है। छत पर गुंबद आठ कोनों वाले ड्रम के ऊपर टिका है। गुंबद पर काले संगमरमर की पट्टियां हैं और सबसे ऊपर उल्टा कमल।शेख निजामुद्दीन के मुरीद और हिंदवी और फारसी के जानेमाने शायर अमीर खुसरो का मकबरा नजदीक में ही है। अमीर खुसरो कई बादशाहों के दरबारी रहे और शेख निजामुद्दीन के इंतकाल के कुछ ही दिन बाद वह भी इस जहान से जुदा हो गए।
दरगाह के आसपास दफन जानीमानी हस्तियों में बादशाह शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम, बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला और बादशाह अकबर द्वितीय का बड़ा बेटा मिर्जा जहांगीर शामिल हैं। जहांआरा बेगम की ख्वाहिश थी कि उसे आम आदमी की तरह खुले आसमान के नीचे दफनाया जाए। इसलिए संगमरमर की जालियों से घिरी उसकी कब्र पर छत नहीं है। मोहम्मद शाह रंगीला और मिर्जा जहांगीर की कब्रें भी जहांआरा बेगम की तरह ही बिना छत की हैं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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