Re: हम भी जी के का करें......|
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Originally Posted by rafik
हम भी जी के का करें......|
नोट: यह कहानी काल्पनिक है लेकिन कहीं ना कहीं आम आदमी की विवशता को दर्शा रही है, जब हम नज़र घुमाकर देखेंगे तो ऐसे कई रामलाल हमें आसपास नज़र आ जायेंगे| ज़रूरत है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-जन की आवाज़ उठाना चाहिए और इसे समाज से उखाड़कर बाहर कर देना चाहिए ताकि वास्तविक ज़िन्दगी में एक आम आदमी रामलाल ना बन सके|
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कहानी भले ही काल्पनिक हो, मगर सोचने पर मजबूर करती है. इस प्रकार की घटनाएं असल जीवन में भी घटित हो रही हैं. यह सब समाज के मुंह पर झन्नाटेदार थप्पड़ नहीं तो क्या है. कहाँ है समाज की आत्मा? अगर है तो बोलती क्यों नहीं? हालात बदल क्यों नहीं देती?
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 30-07-2014 at 10:28 PM.
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