Re: घूरे के दिन फिर जाते हैं
अच्छे खासे जन सेवक भी
अक्सर मुंह की खा जाते हैं
सौ सुनार की एक लुहार की
क्या क्या रंग दिखा जाते हैं
अब हैं ऐसे लोग कहाँ जो
वादे पर मर मिट जाते हैं
मातृभूमि के सच्चे सेवक
इतिहास में पाए जाते हैं
कलयुग के नेताओं को देखो
दीवार पे लिख कर जाते हैं
“अवसर मिलते ही हम तो
मय सात पुश्त तर जाते है”
मगर
ऐसे घटिया नेताओं को
सबक सिखायेगी जनता
बोरी-बिस्तर बाँध कर
इनका निबटा दो टंटा.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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