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Old 21-08-2014, 10:32 PM   #3
rajnish manga
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Default Re: जूज़र और शमरदल का ख़ज़ाना

भाइयों को बहुत लज्जा आयी और उन्होंने कहाः हे भाई! हम तुमसे और माँच से मिलना चाहते थे किन्तु अपने दुर्व्यवहार के कारण तुम्हारे घर आते हुए लज्जा आती थी। शैतान ने हमें धोखा दिया और हमने तुम्हारे साथ बुराई की। हमें अपने कृत्य पर पछतावा है। जूज़र ने उन्हें गले लगाया और कहाः मेरे दिल में आप लोगों के लिए कोई द्वेष नहीं है। यहीं हमारे साथ रहिए। यह सुनकर माँ बहुत ख़ुश हुयी और उसने जूज़र को दुआ देते हुए कहाः मेरे बेटे! ईश्वर तुमसे राज़ी हो कि तुमने हमें प्रसन्न किया। इस प्रकार भाइयों में आपस में मेल हो गया और सलीम व सालिम भी जूज़र के घर में रहने लगे।

जूज़र हर दिन सुबह जल्दी उठता और मछली पकड़ने चला जाता। मछली पकड़ता, उसे बेचता और मिलने वाले पैसों से खाने की वस्तुएं ख़रीदता और घर ले आता। सलीम और सालिम को जूज़र के घर में एक महीना गुज़र गया और वे बिना काम किए यूं ही खाते और आराम करते।

सदैव की भांति जूज़र एक दिन सुबह समुद्र के किनारे मछली पकड़ने गया। जाल को पानी में डाला और निकाला किन्तु एक भी मछली नहीं आयी। दूसरे स्थान पर गया वहां भी उसने ऐसा किया किन्तु इस बार भी जाल ख़ाली निकला। तीसरे स्थान पर गया और वहां भी जाल डाला किन्तु जब बाहर निकाला तो जाल ख़ाली निकला। यहां तक कि सूरज डूबने तक वह मछली पकड़ने की कोशिश करता रहा किन्तु कोई परिणाम नहीं निकला। मानो समुद्र से मछलियां ख़त्म हो चुकी हैं। अंततः जाल को कंधे पर रख कर चिंतित मन के साथ घर की ओर चल पड़ा। मार्ग में रोटी की दुकान पर पहुंचा। वहां बहुत भीड़ देखी तो एक किनारे खड़ा हो गया। नानवाई ने उसे पुकारा और कहाः जूज़र रोटी चाहिए? जूज़र चुपचाप खड़ा रहा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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