Re: जूज़र और शमरदल का ख़ज़ाना
मैं और मेरे दो भाईयों ने निर्णय लिया कि इस काम को अंजाम दें लेकिन अब्दुर्रहीम ने कहा कि न मुझे किताब चाहिए और न ही मैं झील पर जाऊंगा। इसलिए हम इस शहर में आ गए और उसने ख़ुद को एक व्यापारी के रूप में परिचित कराया और बाक़ी कहानी से तो तुम ख़ुद ही अवगत हो।
जूज़र ने पूछा, अब मलिक अहमर के बेटे कहां हैं? अब्दुस्समद ने कहा वही दो मछलियां तो हैं कि जिन्हें मैंने पकड़ा है। लेकिन जूज़र यह जान लो कि शमरदल ख़ज़ाना केवल तुम्हारे लिए खुलेगा। क्या तुम मेरे साथ उस शहर चलोगे कि जहां ख़ज़ाना है, चलें और काम समाप्त कर दें। जूज़र ने सोच कर कहा कि नहीं मैं नहीं जा सकता, मेरी मां और भाई मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं अगर तुम्हारे साथ जाऊंगा तो उनकी आवश्यकता कौन पूरी करेगा।
अब्दुस्समद ने कहा हमारी यात्रा चार महीने से अधिक लम्बी नहीं खिंचेगी। मैं तुम्हें एक हज़ार सिक्के दे रहा हूं ताकि अपने परिवार को दे दो और चार महीने तक उन्हें कोई कठिनाई नहीं हो। जूज़र ने स्वीकार कर लिया। एक हज़ार सिक्के अब्दुस्समद से लिए और घर लौट आया। मां से पूरी कहानी बतायी। मां को सिक्के दिए और कहा: प्यारी मां यह सिक्के तुम्हारी और भाईयों की ज़रूरतों की आपूर्ति के लिए हैं इन्हें लो और मेरे लिए प्रार्थना करो। उसके बाद अपनी मां को अलविदा कहा और अब्दुस्समद के पास वापस आकर यात्रा पर चल दिया।...
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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