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Old 22-02-2011, 02:34 PM   #43
Sikandar_Khan
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Default Re: कुछ सीख देने वाली कहानियाँ (inspiring stories)

शहर मे कुछ लोग अपने-अपने धर्म को लेकर आपस मे झगड रहे थे वे एक दूसरे के धर्म पर तरह-तरह के आरोप मढ रहे थे उस झगडे मे सबसे खास बात यह थी कि वहां सभी धर्म के अलग-अलग व्यकित मौजूद थे और हर व्यकित अपने धर्म को श्रेष्ठ बतला रहे थे.
एक महात्मा जब उधर से गुजर रहे थे तो उन्होने वो नज़ारा देखा और उस भीड के ओर बढे और लोगो को बढी मुशिकल से शांत किया उन्होने उस भीड मे सभी धर्मो के लोग थे और हर कोई अपने ही धर्म को श्रेष्ठ बता रहे थे जैसे वो कोई धर्म न हो कोई वस्तु हो गई महात्मा ने कहा- तुम लोग एक दूसरे
के धर्म पर आरोप लगा रहे हो बल्कि मेरी नज़र से तुम लोग किसी भी धर्म के लायक नही हो क्योकि जो अपने धर्म की श्रेष्ठ के लिये दूसरे धर्म पे आरोप
लगाये उसका स्वयं का कोई धर्म नही क्योकि कोई भी धर्म ये नही कहता कि उस ऐसा रुप दो, उसे विवाद का विषय बनाओ फ़िर वो धर्म कहा रहा वो मूलस्वरुप से हट गया तुम लोग धर्म के मूल अर्थ को नही जानते तुम्हे
धर्म के नाम पर लडना आता है जब अच्छा रुप अपने धर्म को नही दे सकते तो ये बुरा रुप भी तुम्हे देने का कोई हक नही है,अपने धर्म की श्रेष्ठता की
पहचान क्या कोई ऐसे देता है हर धर्म अपने आप मे स्वतंत्र है जब तक वो अपनी गरिमा मे है अर्थात हिसात्मक रुप न लिये हो क्योकि धर्म कभी विवादी नही होता धर्म की मूल भावना है शांन्ति पूजा एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव से समझ रखना अर्थात अन्य धर्मो को भी सम्मानित नज़र से देखना सम्मानित नज़र से अभिप्राय यह है कि हत धर्म को उतना ही
महत्व देना जितना की हम अपने धर्म को देते है और उसे मानवता के धर्म का रुप देना क्योकि सबसे बडा अगर कोई धर्म है तो मानवता का धर्म, धर्म का अर्थ ही होता है धारण करना समस्त सभ्यता और संस्क्रति के साथ, आप लोगो का ये करना तो दूर रहा आपने उसे दूसरा ही रुप दे दिया ये कोई रास्ता है धर्म को साबित करने का, महात्मा जी के इतना कहते ही सभी लोगो के सर शर्म से झुक गये चूंकि उस भीड मे हर धर्म के लोग होने के कारण महात्मा जी ने सभी को उनकी धर्म की भाषा मे ही समझाया सभी को मूल भाषा मे समझाने के बाद महात्मा जी ने पूछा - अब बतलाओ
मै किस धर्म का हूं बताइये मै किस धर्म का हूं सभी के सर शर्म से झुक गये।
महात्मा ने अन्त मे कहा- सिर मत झुकाओ, थोडा सा अपनी समझ और सोचने के ढंग के प्रति अपने आप को उस ओर जाग्रत करो तभी तुम अपने धर्म के प्रति उपलब्ध हो पाओगे क्योकि सबसे बडा धर्म इन्सानियत का धर्म जो कि आदमी को आदमी से जोडता है जब आदमी , आदमी से जुडेगा तो देश जुडेगा वो हमारे धर्म की असल पहचान होगी इतना कहकर महात्मा दूसरी दिशा की ओर प्रस्थान कर गये.


आज हमारी देश की एकता पर कई अपने और बेगानो की नज़र है जो नही चाहते की भारत एक जुट हो इस लिये सावधान रहियेगा
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Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..."

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