उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
उपन्यास: जीना मरना साथ साथ
(इंटरनेट से / लेखक का नाम ज्ञात नहीं)
आज से बीस बाइस साल पूर्व जब मैं किशोरावस्था में था तब मुझपर भी प्यार का बुखार हावी था जो आज तक नहीं उतरा। मैं बनबीघा गांव मे अपनी बुआ के यहां रहता था और मेरे कमरे की खिड़की के सामने था रीना का घर। कब हमारा प्यार जवान हो गया पता नहीं चला। गांव में रहते हुए एक आम किसान के बेटे बेटियों की तरह हम लोगों का रहन सहन था और हम लोग साथ साथ पढ़ने स्कूल जाते या फिर साथ साथ खेलते हुए कितने ही साल बिता दिये। लुका-छुपी से लेकर लुडो और कभी कभी कबड्डी भी। प्रेम क्या होता है मैं नहीं जानता था। गांव में उस समय एक आध लोगों के घरों में टेलीविजन था जिसमें रामायण देखने अथवा महाभारत देखने सुबह दो दर्जन से अधिक बच्चे जाते थे जिसमें रीना भी साथ होती थी। रात मे शुक्रबार को एक बजे रात तक जग कर दर्जनों बच्चे सिनेमा देखते और घर जाते। सुबह मार खानी पड़ती पर बदला कुछ नहीं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 11-11-2014 at 09:14 PM.
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