Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
पसीने से तर-बतर जब घर पहुंचा तो फूआ ने पूछ लिया:
‘‘कि होलउ रे, पसीने पसीने होल ही’’
मैं कुछ नहीं बोला, मेरे सीने की धड़कन बढ़ी हुई थी। मैं जाकर खटिये पर लेट गया। फूआ ने लाकर पानी दिया। पानी पीने के बाद मैंने बताया,
‘‘आज किचिनिया पकड़ रहलौ हल पर हमभी साईकिलिया छोड़बे नै कलिए।’’
खैर सुबह हुई और जब मैं साईकिल को जाकर देखा तो किचिन और भूत का सारा बाकया समझ में आ गया। साइकिल के पिछले पहिये में कपड़ा फंसा हुआ था जिसकी वजह से वह घूमने में दिक्कत कर रही थी। सारा मामला समझ में आ गया पर मन में उस बागीचे के बगल से गुजरते वक्त आज भी डर लगता।
भूत के इस प्रकरण पर एक छोटी सी घटना याद आ गई। वह बचपन के दिन थे। मैं, गुडडू, बब्लू सहित कई दोस्त बरगद पेड़ के नीचे बैठे थे। झोला-झोली हो गई थी। तभी मेरे मन में एक खुराफात सूझी और मैं भूत भरने का नाटक करने लगा। मैं मूंह से अजीब अजीब आवाज निकालने लगा। आठ दस साथी वहां थे। पहले सभी ने इसे हल्के में लिया। किसी ने कहा देख यार यह सब मजाक ठीक नै हाउ। तो किसी ने कहा कि मैं डरने वाला नहीं पर मैं भूत भरने का नाटक करता रहा। झूमता रहा और आवाज निकालता रहा। एक एक कर सभी वहां से भाग गए पर गुडडू साहसी था उसने कहा कि हम डरे वाला नै हिअउ। नै भागबै। पर जब सभी भाग गए तो वह भी डरने लगा और जैसे ही वह भागने की कोशीश करने लगा तो मैं हंस पड़ा तब वह समझ गया कि मैं नाटक कर रहा था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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