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Originally Posted by Lavanya
जी बिल्कुल , आप सभी के विचारों के माध्यम से मेरे विचारों को भी स्पष्टता मिली।
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[QUOTE=Dr.Shree Vijay;526871]
प्रिय लावण्या जी, आपने एक सुंदर विषय कों चुना हें, हम चाहते हैं कि आप इस सुन्दर शुरुआत को और आगे बढ़ाएं, चाहे एक एक पोस्ट की कड़ी के रूप में.........[/QUOTE बहु अच विषय
प्रिय लावण्या जी इतने अछे विषय को चुनने के लिए सबसेपहले आपको मै धन्यवाद देना चाहूंगी. इस विषय ने सबको एकबार सोचने के लिए मजबूर कर ही दिया की सच में हमने तो कभी सोचा ही नही की कला और गुण एक हैं या अलग अलग हैं ...
जहा तक मेरा मानना है की गुण ईश्वर की दी हुई एक अंदरूनी शक्ति है और कला अधिकतर हम इन्सान सीखते हैं और कुछ समय के अभ्यास के बाद किसी कला में पारंगत हो सकते हैं ... इसलिए कला और गुण दोनो अलग हैं.. जैसेकी गुण के कई स्वरुप हम देखते हैं दया, ममता पूज्य भाव, त्याग , वात्सल्य भावना ये सब गुण है एकदूजे के लिए निस्वार्थता ये भी एक गुण है . और कला में आते है नृत्य कला, पाक कला , लेखन कला , हस्त कला आजकल मार्शल आर्ट कला भी है.. बांसुरी बजने की कला ये सब कलाएं है और गुण वो है जो इश्वर द्वारा दिए गए हैं .. गुणों में पारंगत नही होना पड़ता बल्कि ये तो इश्वर की देन है हम इंसानों को ...