Re: ईर्ष्या / साहित्य शास्त्र / रामचन्द्र शुक्
अधिकार संबंधी अभिमन अनौचित्य की सामर्थ्य का अधिक होता है। यदि अधिकार के अनुचित उपयोग की संभावना दूर कर दी जाए तो स्थान स्थान पर अभिमन की जमी हुई मैल साफ हो जाए और समाज के कार्य विभाग चमक जाएँ। यदि समाज इस बात की पूरी चौकसी रखे कि पुलिस के अफसर उन्हीं लोगों को कष्ट दे सकें जो दोषी हैं, माल के अफसर उन्हीं लोगों को क्षतिग्रस्त कर सकें जो कुछ गड़बड़ करते हैं, तो उन्हें शेष लोगों पर जो निर्दोष हैं, जिनका मामला साफ है और जिससे हर घड़ी काम पड़ता है, अभिमन प्रकट करने का अवसर कहाँ मिल सकता है? जब तक किसी कार्यालय में छोटे से बड़े तक सब अपना अपना नियमित कार्य ठीक ठीक करते हैं तब तक एक के लिए दूसरे पर अपनी बड़ाई प्रकट करने का अवसर नहीं आता है। पर जब कोई अपने कार्य में त्रुटि करता है तब उसका अफसर उसे दंड देकर अपनी बड़ाई या अधिक सामर्थ्य दिखलाता है। सापेक्ष बड़ाई दूसरे को क्षतिग्रस्त करने और दूसरे को नम्र करने की सामर्थ्य का नाम है। अधिकार की सापेक्ष बड़ाई दूसरे को क्षतिग्रस्त करने की सामर्थ्य है और धन या गुण की सापेक्ष बड़ाई में दूसरे को नम्र करने की सामर्थ्य है। इससे विदित हुआ कि यह छोटाई बड़ाई हर समय तमाशा दिखाने के लिए नहीं है, बल्कि अवसर पड़ने पर संशोधन या शिक्षा के लिए है। किसी अवधा के ताल्लुकेदार के लिए बड़ाई का वह स्वाँग दिखाना आवश्यक नहीं है कि वह जब मन में आए तब कामदार टोपी सिर पर रख, हाथी पर चढ़ गरीबों को पिटवाता चले। किसी देहाती थानेदार के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह सिर पर लाल पगड़ी रख गँवारों को गाली देकर हर समय अपनी बड़ाई का अनुभव करता और कराता रहे। अभिमन एक व्यक्तिगत गुण है, उसे समाज के भिन्न व्यवसायों के साथ जोड़ना ठीक नहीं। समाज में स्थान स्थान पर अभिमन के अजायबघर स्थापित होना अच्छा नहीं। इस बात का ध्यानन रखना समाज का कर्तव्यर है कि धर्म औरराजबल से प्रतिष्ठित संस्थाओं के अंतर्गत अभिमानालय और खुशामदखाने न खुलने पाएँ।
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