13-09-2014, 10:17 AM
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Re: विचार (thought) की भाषा
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Originally Posted by lavanya
चाहे हम कितनी भी भाषाओं के ज्ञाता क्यों न हों , परन्तु जब भी व्यक्ति क्रोध में होता है , भावुक होता है ( अर्थात रो रहा होता है या अपनी भावनाएं ह्रदय से व्यक्त कर रहा होता है ) , और जब मन में विचार कर रहा होता है तो वह अपनी मातृ भाषा का ही प्रयोग करता है या वह भाषा जो व्यक्ति आम बोल-चाल में प्रयोग करता है।
जैसे आजकल लोग हिंगलिश में ही स्वाभाविक रूप से बातें करते हैं , तो मन में विचार भी उसी भाषा में करते हैं। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही है , मेरे मन में विचार हिंगलिश में ही आते हैं।
जैसे - oh wow कितना interesting post है , मैं इसको reply ज़रूर करुँगी .
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इस सूत्र पर मैं लावण्या जी के विचारों से पूर्णरूपेण सहमत हूँ, किन्तु कुछ संशोधन के साथ. मेरे व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार-
“प्रायः हम उसी भाषा में विचार अथवा चिन्तन करते हैं जिस भाषा को हम तत्कालीन परिवेश के अनुरूप प्रचुरतापूर्वक बोल रहे होते हैं. इसके लिए यह आवश्यक है कि दोनों, तीनों या सभी भाषाओँ पर आपकी पकड़ एक समान हो. यदि किसी भाषा पर आपकी पकड़ ज़रा भी कम हुई तो आपका मस्तिष्क तुरन्त दूसरी भाषा में चिन्तन करने लगेगा. मातृभाषा का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है.”
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