Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इतना कह कर मैं चला गया। अंदर जोर का संधर्ष हो रहा था। एक मन यह भी कह रहा था कि मेरी पिटाई की चर्चा रीना तो जरूर सुनी होगी फिर क्यों उसने कुछ खास नहीं किया। बगैर बगैर कई ख्याल मन को मथ रहे थे। देर शाम लौटा तो फूआ ने खाने की जिदद की तो मैं झुंझला गया और पेट दर्द होने की बात कह लालटेन लेकर एक किताब उलट दिया। रीना के ख्यालो में खोया, परेशां सा।
अब मन एक बात का निर्णय लेने के लिए द्वंद कर रहा था कि आखिर जब प्रेम पवित्र है तो छुपाना कैसा? क्यों गांव वाले और मित्र लोग भी अन्य फंसने की कहानियों की तरह मुझे भी देखते है? अब इसे जगजाहिर होना ही चाहिए।
फिर पता नहीं क्या हुआ! एक लोहे का पेचकस ढूढ़ कर उसे गर्म करने लगा और फिर छन्न से आकर वह मेरे हाथ से सट गया। वांये हाथ पर कलाई से उपर अंग्रेजी में रीना लिखने लगा। धीरे धीरे पेचकस को गर्म करता और फिर उसे हाथ पर सटा देता। असाह्य दर्द और पीड़ा, पर प्रेम की पीड़ा से कम ही। मुंह से उफ तक नहीं निकली।
‘‘ लगो है चमड़ा जरो है रे छौंड़ा, की करो हीं रे।’’ फुआ ने जब यह आवाज दी तो मैंने इसका प्रतिकार कर दिया और फिर उस रात नींद आंखों से रूठ कर रीना के पास चली गई। सुबह देखा तो हाथ पर फफोले निकले हुए थे। जलन असहनीय होने लगी और तब मैंने मिटृटी का एक लेप उसके उपर लगा दिया तथा पूरज्ञ बांह का एक शर्ट पहन कर घर से निकल गया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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