Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इन्हीं द्वंदो-प्रतिद्वंदो के बीच दो दिन गुजर गए। इस बीच फुआ से कोचिंग के लिए पटना नहीं जाने को लेकर वाकयुद्ध भी हो गया और मैंने सोचे गए अर्थाभाव का बहाना ही वहां आजमा कर मामले को इतिश्री कर दी। भला इतने कम खर्च पर पटना में पढ़ाई कैसे होगी, खर्च को दुगना करना पड़ेगा। तीसरे दिन दीया-बत्ती के बेला में मैं पोखर पर चहलकदमी कर रहा था की रीना के घर के आगे रिक्सा आकर रूका और दो आदमी के उससे उतरने का आभास भी हो गया। किसी ने जैसे कहा हो की रीना आ गई। चूकती हुई सांस जैसे वापस आ गई हो। धन्य भोला। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया।
अब, जबकि हाथ पर रीना का नाम लिखे जाने का चर्चा गांव में नमक मिर्च के साथ साथ अचार मिलाकर चटखारे के साथ हो रही है तो मुझे सावधान रहकर योजना बनाने की जरूरत है। सो कुछ दिन एक दूसरे से मिलने या आंख मिचौली करने की लालसा को दफन कर दिया ताकि खामोशी रहे। पर यह खामोशी तूफान से पहले की खामोशी थी और तूफान के आने का आभास मुझे था। आठ से दस दिन गुजर गए, रीना घर से नहीं निकली थी और छत पर भी नहीं आ रही थी। शायद यही करार हुआ होगा उसके गांव वापसी का या फिर बाजी पलट गई है। मन ही मन सशंकित मैने पहले वाली शर्त को ही माना और अपनी ओर से भी किसी तरह की हलचल नहीं की।
आभासी दुनिया में दो दिलों का मिलन हो रहा था। शायद यह प्रेम के संवेदनाओं की पराकाष्ठा ही थी कि अपने अपने घरों में होने के बाद भी मिलन की तृप्ति से मन प्रफुल्लित हो उठा जैसे कई दिनों से सूखे धान की खेत को भादो के हथिया नक्षत्र ने सूढ़ लटका पर पानी से तर-बतर कर दिया हो। आभासी दुनिया में मिलन के इस नैसर्गिक सुख को सिर्फ जिया जा सकता है, जाना नहीं जा सकता।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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